उम्र भर काविश-ए-इज़हार ने सोने न दिया हर्फ़-ए-ना-गुफ़्ता के आज़ार ने सोने न दिया दश्त की वुसअत-ए-बे-क़ैद में क्या नींद आती घर की क़ैद-ए-दर-ओ-दीवार ने सोने न दिया थक के सो रहने को रस्ते में ठिकाने थे बहुत हवस-ए-साया-ए-दीवार ने सोने न दिया कभी इक़रार की लज़्ज़त ने जगाए रक्खा कभी अंदेशा-ए-इनकार ने सोने न दिया हो गई सुब्ह बदलते रहे पहलू शब भर एक करवट पे दिल-ए-ज़ार ने सोने न दिया