उम्र गुज़री रहगुज़र के आस-पास रक़्स करते उस नज़र के आस-पास ज़ुल्फ़ खुलती है तो उठता है धुआँ आबशार-ए-चश्म-ए-तर के आस-पास कौंदती हैं बिजलियाँ बरसात में ताइर-ए-बे-बाल-ओ-पर के आस-पास रात भर आवारा पत्ते और हवा रक़्स करते हैं शजर के आस-पास छोड़ आया हूँ मता-ए-जाँ कहीं ग़ालिबन उस रहगुज़र के आस-पास बाल बिखराए ये बूढ़ी चाँदनी ढूँडती है क्या खंडर के आस-पास इस गली में एक लड़का आज भी घूमता रहता है घर के आस-पास एक सूरत-आश्ना साए की धूप पड़ रही है बाम-ओ-दर के आस-पास कैसे पुर-असरार चेहरे हैं 'रसा' ख़्वाब-गाह-ए-शीशा-गर के आस-पास