उम्र की अव्वलीं अज़ानों में चैन था दिल के कार-ख़ानों में लहलहाते थे खेत सीने के बाँसुरी बज रही थी कानों में बाँसुरी जिस की तान मिलती थी ख़्वाब के बे-नुमू जहानों में ख़्वाब जिन के निशान मिलना थे आने वाले कई ज़मानों में मुस्कुराहट चराग़ ऐसी थी रौशनी खिल उठी मकानों में रौशनी जिस का दिल धड़कता था दूर सहरा के सारबानों में वो किसी बाग़ जैसी हैरानी अब अगर है तो दास्तानों में