उम्र के लम्बे सफ़र से तजरबा ऐसा मिला धूप जब भी सर पय आई लापता साया मिला देखना है अक्स मुझ को अपना पूरा ही मगर जब मिला वो आइना मुझ को ज़रा टूटा मिला हँसते चेहरों की कहानी जानती हूँ ख़ूब मैं जिस को भी परखा वही टूटा मिला बिखरा मिला जल रहे हैं पाँव इक मुद्दत से राहत के लिए जिस तरफ़ भी मैं गई तपता हुआ सहरा मिला रात दिन माँगी दुआ जिस हम-सफ़र के वास्ते मेरे जीते जी वो मेरा मर्सिया पढ़ता मिला