उम्र-भर चारा-ए-जुनूँ न हुआ अब ये क्या सोचिए कि क्यूँ न हुआ नहीं मालूम क्यूँ तबीअ'त में आज रोने से कुछ सुकूँ न हुआ कहीं वो माइल-ए-करम ही न हों मुस्कुराए तो ग़म फ़ुज़ूँ न हुआ हम पिएँ भी तो क्या पिएँ ये मय भर गया जाम लाला-गूँ न हुआ शायद अब के बरस है ख़त्म जुनूँ फ़स्ल-ए-गुल में मुझे जुनूँ न हुआ इश्क़ का ज़िक्र शे'र में क्यूँ है ये तो 'आली' ग़म-ए-दरूँ न हुआ