उम्र-भर ख़्वाब-ए-मोहब्बत से न बेदार हुए इसी किरदार से हम साहब-ए-किरदार हुए कभी काँटों की जराहत से भी आराम मिला लाला-ओ-गुल भी कभी बाइस-ए-आज़ार हुए आदमियत के ख़द-ओ-ख़ाल को ज़ीनत न मिली सारे आईन फ़क़त नक़्श-ब-दीवार हुए हाए वो हुस्न किसी ने भी न देखा जिस को हाए वो राज़ जो रुस्वा सर-ए-बाज़ार हुए कितने दुश्मन थे ज़माने में हमारे लेकिन अपनी ही हस्ती से हम बरसर-ए-पैकार हुए दोस्तो एक तुम्हारी भी रिया-कारी से हम को होना था ख़बर-दार ख़बर-दार हुए नौहा-ए-ज़ात का ये भी तो इक अंदाज़ हुआ अश्क आँखों में नहीं आए तो अशआ'र हुए बात कुछ यूँ है कि हिम्मत ही न हारी हम ने मेरे पिंदार-ए-ख़ुदी पर तो बहुत वार हुए रंग-ओ-बू पाँव की ज़ंजीर हुए जाते हैं जा नसीम-ए-सहरी हम तो गिरफ़्तार हुए हम कि सर-गर्म-ए-सफ़र थे रहे सर-गर्म-ए-सफ़र मरहले तो कभी आसाँ कभी दुश्वार हुए अब तो ना-क़द्री-ए-अर्बाब-ए-हुनर है ऐ 'लैस' आप क्या सोच के इस अहद में फ़नकार हुए