उम्र-ए-अबद से ख़िज़्र को बे-ज़ार देख कर ख़ुश हों फ़ुसून-ए-नर्गिस-ए-बीमार देख कर क्या जल्वा-गाह-ए-हसरत-ए-नज़्ज़ारा है बहिश्त हैराँ हूँ सूरत-ए-दर-ओ-दीवार देख कर बादा ब-क़द्र-ए-ज़र्फ़ सही रस्म-ए-मय-कदा साक़ी नज़ाकत-ए-दिल-ए-मय-ख़्वार देख कर अब जुस्तजू-ए-दोस्त की मंज़िल कहीं भी हो हम चल पड़े हैं राह को दुश्वार देख कर शायान-ए-जुर्म-ए-इश्क़ न थी क़ैद-ए-ज़िंदगी जी शाद हो गया रसन-ओ-दार देख कर अब इस से किया ग़रज़ ये हरम है कि दैर है बैठे हैं हम तो साया-ए-दीवार देख कर अब हश्र तक हिजाब-नशीं है निगाह-ए-शौक़ छुपना था रंग-ए-हसरत-ए-दीदार देख कर राज़-ए-फ़रोग़-ए-आख़िर-ए-शब कुछ न खुल सका क्यूँ ख़ुश है शम्अ' सुब्ह के आसार देख कर साज़-ए-ग़ज़ल उठा ही लिया हम ने ऐ 'रविश' इस चश्म-ए-नीम-बाज़ का इसरार देख कर