उन की निगाह-ए-नाज़ का मस्ताना हो गया मैं होश में कुछ और भी दीवाना हो गया ज़ाहिद का ख़ौफ़ और न कुछ मोहतसिब का डर अब तो मिज़ाज-ए-शैख़ भी रिंदाना हो गया मरने के बाद खुल गईं सारी हक़ीक़तें जो ज़िंदगी में राज़ था अफ़्साना हो गया यादें गईं वो शौक़ वो अरमान लुट गए आबाद था जो दिल कभी वीराना हो गया मजनूँ के बाद पूछता था कौन नज्द को आबाद मेरे दम से ये वीराना हो गया औलाद-ए-नेक-बख़्त की 'आज़म' से पूछिए जो अपने घर में आप ही बेगाना हो गया