उन को अपने क़रीब देखा है ख़्वाब मैं ने अजीब देखा है मेरी आँखों से जितना दूर है वो उतना दल के क़रीब देखा है इश्क़ को कुछ न दे सका ख़ैरात हुस्न को भी ग़रीब देखा है पस्ती-ए-हाल पर न हो मायूस किस ने अपना नसीब देखा है दिल गया देखते हैं उस बुत को सानेहा ये अजीब देखा है