उन ने किया था याद मुझे भूल कर कहीं पाता नहीं हूँ तब से मैं अपनी ख़बर कहीं आ जाए ऐसे जीने से अपना तो जी ब-तंग जीता रहेगा कब तलक ऐ ख़िज़्र मर कहीं फिरती रही तड़पती ही आलम में जा-ब-जा देखा न मेरी आह ने रू-ए-असर कहीं मुद्दत तलक जहान में हँसते फिरा किए जी में है ख़ूब रोइए अब बैठ कर कहीं यूँ तो नज़र पड़े हैं दिल-अफ़गार और भी दिल रीश कोई आप सा देखा न पर कहीं ज़ालिम जफ़ा जो चाहे सो कर मुझ पे तू वले पछतावे फिर तो आप ही ऐसा न कर कहीं फिरते तो हो बनाए सज अपनी जिधर तिधर लग जावे देखियो न कसू की नज़र कहीं पूछा मैं दर्द से कि बता तू सही मुझे ऐ ख़ानुमाँ-ख़राब है तेरे भी घर कहीं कहने लगा मकान-ए-मुअ'य्यन फ़क़ीर को लाज़िम है क्या कि एक ही जागह हो हर कहीं दरवेश हर कुजा कि शब आमद सरा-ए-ऊस्त तू ने सुना नहीं है ये मिस्रा मगर कहीं