उन से बरगश्ता-निगाही के सिवा कुछ न मिला आख़िर-ए-कार तबाही के सिवा कुछ न मिला दिल को हर-चंद कुरेदा मगर उस की तह में एक बहके हुए राही के सिवा कुछ न मिला चाँद तारे निगह-ए-पास में निकले बे-नूर आसमानों में सियाही के सिवा कुछ न मिला तज्ज़िया उन के इरादों का जो करने बैठे ग़ैर की पुश्त-पनाही के सिवा कुछ न मिला की 'मुनव्वर' ने दुआ जो भी वो नाकाम रही अज्र में क़हर-ए-इलाही के सिवा कुछ न मिला