उन से दो आँख से आँसू भी बहाए न गए क़ब्र-ए-आशिक़ के निशाँ भी तो मिटाए न गए हम मिटे भी तो मिटे ख़ाक जो हसरत न मिटी हम गए भी तो गए क्या जो बुलाए न गए बज़्म-ए-दुश्मन में अभी थे अभी अपने घर में आ के यूँ बैठे कि जैसे कहीं आए न गए बर्क़ कहिए कि छलावा जो चमक दिखला कर इस तरह आए कि आए भी और आए न गए हैं वो 'आशिक़' कि जगह पा के न निकले दिल से याद आए तो जुनूँ मुझ से भुलाए न गए