उन से गर फ़ैज़याब हो जाता By Ghazal << दिल-ए-बेताब आफ़त है बला ह... ज़ख़्म दिल के अगर सिए होत... >> उन से गर फ़ैज़याब हो जाता माहताब आफ़्ताब हो जाता जा सका मैं न बाम-ए-जानाँ तक वर्ना आली-जनाब हो जाता आगे तक़दीर की रसाई थी मैं वहाँ बारयाब हो जाता दिल लगाना सवाब था लेकिन जी छुड़ाना अज़ाब हो जाता 'नूह' होते अगर न शाहिद-बाज़ मैं मुरीद-ए-जनाब हो जाता Share on: