उन से मायूस-ए-इल्तिफ़ात नहीं गो ब-ज़ाहिर तवक़्क़ुआत नहीं इश्क़ ही वजह-ए-मुश्किलात नहीं यूँ भी ग़म से कहीं नजात नहीं इश्क़ की अज़्मतें बजा लेकिन इश्क़ ही मक़्सद-ए-हयात नहीं जिन को आसाइशें मयस्सर हैं वो भी आसूदा-ए-हयात नहीं इश्क़ है ताब-आज़्मा लेकिन आप चाहें तो कोई बात नहीं वो ख़फ़ा और इक जहाँ दुश्मन अब कोई सूरत-ए-हयात नहीं अज़्म-ए-तकमील-ए-'आरज़ू' करते ज़िंदगी को मगर सबात नहीं