उँगलियाँ फेर रहा था वो ख़यालों में कहीं लम्स महसूस हुआ है मिरे बालों में कहीं अब मिरा साथ नहीं देता पियादा दिल का हार जाऊँ न मैं आ कर तिरी चालों में कहीं इस तशख़्ख़ुस पे भी रहता है ये धड़का दिल को खो न जाऊँ मैं तिरे चाहने वालों में कहीं एक सूरज ने मुझे चाँद का रुत्बा बख़्शा वर्ना होती मैं किताबों के हवालों में कहीं मुझ को लगता तो नहीं वो मुतज़लज़ल लेकिन इस को वहशत ही न ले जाएँ ग़ज़ालों में कहीं