उन्हें क्या इल्म जो हम को यहाँ समझाने आए हैं कि हम दैर-ओ-हरम होते हुए मयख़ाने आए हैं उन्हें भी देख आएँ इक नज़र मुझ से फ़रमाएँ उन्हीं पर छोड़ता हूँ जो मुझे समझाने आए हैं हमें पूछो सुरूर उन का कि ये साक़ी की मस्त आँखें हमारे ज़र्फ़ से नापे हुए पैमाने आए हैं अगर आए हैं नासेह आएँ लेकिन ये तो फ़रमा दें समझने आए हैं ख़ुद या हमें समझाने आए हैं बढ़ा चल शौक़ से ऐ इश्क़ के राही कि इस रह पर कहीं बस्ती भी आएगी अगर वीराने आए हैं मय-ए-गुल-गूँ है साक़ी है 'सहर' वाइ'ज़ से कहता है अभी फ़रमाएँ मुझ से आप जो फ़रमाने आए हैं