ऊपर बादल नीचे पर्बत बीच में ख़्वाब ग़ज़ालाँ का देखो मैं ने हर्फ़ जमा के नगर बनाया जानाँ का पागल पंछी ब'अद में चहके पहले मैं ने देखा था उस जंपर की शिकनों में हल्का सा रंग बहाराँ का बस्ती यूँही बीच में आई अस्ल में जंग तो मुझ से थी जब तक मेरे बाग़ न डूबे ज़ोर न टूटा तूफ़ाँ का हम इम्लाक-परस्त नहीं हैं पर यूँ है तो यूँही सही इक तिरे दिल में घर है अपना बाक़ी मुल्क सुलैमाँ का रंज का अपना एक जहाँ है और तो जिस में कुछ भी नहीं या गहराव समुंदर का है या फैलाव बयाबाँ का हम कोई अच्छे चोर नहीं पर एक दफ़अ तो हम ने भी सारा गहना लूट लिया था आधी रात के मेहमाँ का