यूरिश-ए-आलाम है लेकिन मिरा दिल एक है सैंकड़ों मौजों की ज़द में आज साहिल एक है यूँ तो हैं लाखों हसीं उल्फ़त के क़ाबिल एक है चार-जानिब हैं शुआएँ माह-ए-कामिल एक है आह-ए-सोज़ाँ नाला-ए-शब-गीर या ज़ब्त-ओ-सुकूँ बद-नसीबों के लिए इन सब का हासिल एक है क़ैस हो फ़रहाद हो वामिक़ हो या महमूद हो हैं निगाहें मुख़्तलिफ़ लैला-ए-महमिल एक है दामन-ए-हर-मौज ही अपना तो साहिल है 'अज़ीज़' कौन कहता है कि बहर-ए-ग़म में साहिल एक है