उस बेवफ़ा का शहर है और वक़्त-ए-शाम है ऐसे में आरज़ू बड़ी हिम्मत का काम है हम को भी छोड़ता हुआ आगे निकल गया जज़्बों का क़ाफ़िला भी बड़ा तेज़-गाम है बे-आरज़ू भी ख़ुश हैं ज़माने में बाज़ लोग याँ आरज़ू के साथ भी जीना हराम है लफ़्ज़ों की जान छोड़ दे मफ़्हूम को पकड़ वर्ना ये सब मुआमला तजनीस-ए-ताम है तौबा के सिलसिले में बस इतना कहेंगे हम मस्लक हो बादा-नोशी तो तौबा हराम है आँखों का है ख़याल कि दाना है दाम में और फ़िक्र कह रही है कि दाने में दाम है नक़्क़ाद तुम को पूछते आए थे कल 'शुजा' कहते थे शाइरों में तुम्हारा भी नाम है