उस बुत को दिल दिखा के कलेजा दिखा दिया अस्बाब अपनी ज़ात का सारा दिखा दिया हम ने तुम्हारी बात पे दिखला के आइना मा'शूक़ ख़ूब-रू तुम्हें तुम सा दिखा दिया मुश्ताक़-ए-दिल हुआ जो वो मय-नोश बज़्म में मैं ने उठा के हाथ में शीशा दिखा दिया हम ने भी उन को उन की तरह छेड़-छाड़ में रोना दिखा दिया कभी हँसना दिखा दिया ओ बहर-ए-हुस्न गिर्या-ए-बेहद के लुत्फ़ से सौ बार मुझ को अश्क का दरिया दिखा दिया हम ने 'शगुफ़्ता' उस बुत-ए-काफ़िर को प्यार में अपना समझ के माल पराया दिखा दिया