उस एक दर को भी दीवार कर के आया हूँ मैं अपने आप से इंकार कर के आया हूँ मुझे ख़बर है कि ये प्यास मार डालेगी मगर मैं आब को दुश्वार कर के आया हूँ बचा बचा के रखा था जिसे ज़माने से वो गुम्बद आज मैं मिस्मार कर के आया हूँ मुबादा ख़्वाब बिखरना मुहाल हो जाए मैं ख़ुद को नींद से बेदार कर के आया हूँ न तैरती थी न जो डूबती थी मुद्दत से हवाले कश्ती को मंजधार कर के आया हूँ मिरा क़ुसूर बस इतना ही सा तो है 'अय्यूब' कि डूबते को मैं उस पार कर के आया हूँ