उस घड़ी कुछ थे और अब कुछ हो क्या तमाशा हो तुम अजब कुछ हो मुझ को कुछ दिल पर इख़्तियार नहीं तुम्हीं इस घर के अब तो सब कुछ हो कुछ नहीं बात तिस पे ये बातें क़हर करते हो तुम ग़ज़ब कुछ हो बहुत की शर्म थोड़ी सी पी कर उस के रखता हूँ लब पे लब कुछ हो इश्क़-बाज़ी नहीं 'रज़ा'-बाज़ी पहले जाँ-बाज़ी कीजे जब कुछ हो