उस जैसा यहाँ कोई भी फ़नकार नहीं है क़ातिल है मगर हाथ में तलवार नहीं है उठूँगा मगर सुब्ह तो होने दे मुअज़्ज़िन सोने के लिए नींद भी दरकार नहीं है यूँ है कि फ़क़त देख के होती है तसल्ली मा'मूली कोई नक़्श या दीवार नहीं है दर्द-ए-दिल-ए-मजरूह कोई समझे तो कैसे इस शहर में मुझ सा कोई बीमार नहीं है हाथों में लिए हाथ गुज़रते रहे हम दो फिर जा के हुआ इल्म मुझे प्यार नहीं है तस्वीर तिरी आँख मिलाती रही दिन भर पर हाथ मिलाने को ये तय्यार नहीं है