उस ज़ुल्फ़ के ख़याल का मिलना मुहाल था जब तक मूए बिलों से निकलना मुहाल था देते न चाट अगर लब-ए-शीरीं के ज़िक्र की मचले था तिफ़्ल-ए-अश्क बहलना मुहाल था पीरी में तर्ज़-ए-इश्क़-ए-जवानी वही रहा सूरत के साथ दिल का बदलना मुहाल था क़ातिल तिरी गली में हुए सब के सर क़लम कैसे थे कूचे रास्ता चलना मुहाल था शुक्र-ए-ख़ुदा बुतों से हुईं गर्म-जोशियाँ पत्थर का मिस्ल-ए-शीशा पिघलना मुहाल था सर तन से कट के लाया शगूफ़ा हमारा ख़ून शाख़-ए-सिनाँ का फूलना फलना मुहाल था ख़त का ग़ुबार छुप न सका रू-ए-यार से आतिश से गुल के ख़ार का जलना मुहाल था महफ़िल में उन को इत्र दिया होगा ग़ैर ने यारों के ग़म में हाथों को मलना मुहाल था उम्र-ए-रवाँ को आँखों से देखा चला जो यार क्या कीजे बिगड़े दिल का सँभलना मुहाल था दिल गर्मी-ए-ख़याल से सूरत-बंधी 'नसीम' उस सीम-तन का साँचे में ढलना मुहाल था