उस ज़ुल्फ़ से दिल हो कर आज़ाद बहुत रोया ये सिलसिला-ए-उल्फ़त कर याद बहुत रोया रहम उस को न था हरगिज़ हर चंद बहाल-ए-सग उस कूचे में मैं कर कर फ़रियाद बहुत रोया मज़लूमी मिरी और ज़ुल्म देख उस बुत-ए-काफ़िर का रहम आया सितम के तईं बे-दाद बहुत रोया दिल ग़म से न हो ख़ाली रोने से मिरा लेकिन ता हो मिरे रोने से वो शाद बहुत रोया इस इश्क़ की मजबूरी नासेह पे खुली जब से कर मन-ए-मोहब्बत का इरशाद बहुत रोया देखी न ख़ुदा-तरसी इक गब्र ओ मुसलमाँ से हर इक से तलब कर कर मैं दाद बहुत रोया अंजाम मोहब्बत का बूझा था मगर उस को जब दिल लगा शीरीं से फ़रहाद बहुत रोया है ताज़ा-गिरफ़्तारों की फ़रियाद को क्या रिक़्क़त शब नाला मिरा सुन कर सय्याद बहुत रोया संगीं-दिली उस बुत की मैं जिस से कही 'हसरत' हर-चंद दिल उस का था फ़ौलाद बहुत रोया