उस का चेहरा भी चमक में न मिसाली निकला चाँद सूरज के उजालों का सवाली निकला लोग समझा किए मौसम ही नहीं उड़ने का उस की उज़्लत का सबब बे-पर-ओ-बाली निकला फूल तो मिल गया ख़ुशबू न मगर हाथ लगी उस को पाने का जुनूँ ख़ाम-ख़याली निकला बारिश-ए-संग में भी आई दुआ होंटों पर सब ने कम-तर जिसे जाना था वो आली निकला बे-हदफ़ तीर चलाता रहा कोई 'गुलज़ार' जब ज़रूरत पड़ी तरकश वहाँ ख़ाली निकला