उस का हर बात में इंकार दुखी करता है मुझ को इक शख़्स लगातार दुखी करता है हैं तिरे शहर में दुख और बहुत से लेकिन मुफ़लिसों को यहाँ तेहवार दुखी करता है सोचता रोज़ हूँ ये आज का दिन अच्छा हो पर मुझे सुब्ह का अख़बार दुखी करता है हाफ़ी के शे'र से मिलती है तसल्ली दिल को शे'र ज़रयून का हर बार दुखी करता है दूर किस किस को करूँ तुम को भुलाने के लिए छेड़ कर बात तिरी यार दुखी करता है तू किसी और की ख़ातिर ही सँवरती होगी बस यही सोच के दीदार दुखी करता है मसअले कुछ हुआ करते हैं हमेशा दुख के इश्क़ भी ऐसा है हर बार दुखी करता है हम को इक शख़्स दुखी करता है ऐसे जैसे बिस्तर-ए-मर्ग पे बीमार दुखी करता है रह के ख़ामोश मुझे इश्क़ करे वो 'राहिल' उस से कहना मुझे इज़हार दुखी करता है