उस का जल्वा जो कोई देखने वाला होता वादा-ए-दीद क़यामत पे न टाला होता बाम पर थे वो खड़े लुत्फ़ दो-बाला होता मुझ को भी दिल ने उछल कर जो उछाला होता कैसे ख़ुश-रंग हैं ज़ख़्म-ए-जिगर ओ दाग़-ए-जिगर हम दिखाते जो कोई देखने वाला होता दिल न सँभला था अगर देख के जल्वा उस का तू ने ऐ दर्द-ए-जिगर उठ के सँभाला होता तुम जो पर्दे में सँवरते हो नतीजा क्या है लुत्फ़ जब था कि कोई देखने वाला होता तुम ने अरमान हमारा न निकाला न सही अपने ख़ंजर का तो अरमान निकाला होता दिल के हाथों न मिला चैन किसी रोज़ 'जलील' ऐसे दुश्मन को न आग़ोश में पाला होता