उस का लहजा किताब जैसा है और वो ख़ुद गुलाब जैसा है धूप हो चाँदनी हो बारिश हो एक चेहरा कि ख़्वाब जैसा है बे-हुनर शोहरतों के जंगल में संग भी आफ़्ताब जैसा है भूल जाओगे ख़ाल-ओ-ख़द अपने आइना भी सराब जैसा है वस्ल के रंग भी बदलते थे हिज्र भी इंक़लाब जैसा है याद रखना भी तुझ को सहल न था भूलना भी अज़ाब जैसा है बे-सितारा है आसमाँ तुझ बिन और समुंदर सराब जैसा है