उस के ग़म को ग़म-ए-हस्ती तू मिरे दिल न बना ज़ीस्त मुश्किल है उसे और भी मुश्किल न बना तू भी महदूद न हो मुझ को भी महदूद न कर अपने नक़्श-ए-कफ़-ए-पा को मिरी मंज़िल न बना और बढ़ जाएगी वीरानी-ए-दिल जान-ए-जहाँ मेरी ख़ल्वत-गह-ए-ख़ामोश को महफ़िल न बना दिल के हर खेल में होता है बहुत जाँ का ज़ियाँ इश्क़ को इश्क़ समझ मश्ग़िला-ए-दिल न बना फिर मिरी आस बँधा कर मुझे मायूस न कर हासिल-ए-ग़म को ख़ुदारा ग़म-ए-हासिल न बना