उस के इतने क़रीब हैं हम तो अब तो ख़ुद के रक़ीब हैं हम तो शे'र कहते हैं छोड़ कर सब काम यार सच-मुच अजीब हैं हम तो ये दुआ है नवाज़ दे या रब इल्म-ओ-फ़न से ग़रीब हैं हम तो इब्न-ए-मरियम से अपना रिश्ता है आश्ना-ए-सलीब है हम तो अब तलक इश्क़ से है महरूमी अब तलक बद-नसीब हैं हम तो हम तो शाइ'र हैं ऐ 'अमन' गोया इस सदी के अदीब हैं हम तो