उस के क़ुर्ब के सारे ही आसार लगे हवा में लहराते गेसू-ए-यार लगे दिल भी क्या नैरंग-ए-सराब-ए-आरज़ू है रौनक़ देखो तो कोई बाज़ार लगे मैं घबरा कर तुझ को पुकारूँ तो ये फ़लक आँगन बीच बहुत ऊँची दीवार लगे इक बे-मा'नी मह्विय्यत सी है शब-ओ-रोज़ सोचो तो जो कुछ है सब बेकार लगे मेरी अना उफ़्तादगी में भी क्या है 'ज़ेब' कोई हाथ बढ़ाए तो तलवार लगे