उस की आँखों में थी गहराई बहुत क्यूँ सताती है ये तन्हाई बहुत हिज्र की सौग़ात क्या लाई बहुत बे-तहाशा याद भी आई बहुत पेच-ओ-ख़म ज़ुल्फ़ों का सारा खुल गया रात भर आँखों में लहराई बहुत क्यूँ चमक उठती है बिजली बार बार ऐ सितमगर ले न अंगड़ाई बहुत घर से 'साहिल' आ के लौटी धूप क्या हो गई मेरी तो रुस्वाई बहुत