उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे इक प्याला जुस्तुजू थी समुंदर मिला मुझे मैं चल पड़ा था और किसी शाहराह पर ख़ंजर-ब-दस्त यादों का लश्कर मिला मुझे दरिया-ए-शब से पार उतरना मुहाल था टूटा हुआ सफ़ीना-ए-ख़ावर मिला मुझे तारों में उस का अक्स है फूलों में उस का रंग मैं जिस तरफ़ गया मिरा दिलबर मिला मुझे हर ज़र्रा बा-कमाल है हर पत्ता बे-मिसाल दुनिया में ख़ुद से कोई न कम-तर मिला मुझे कब से भटक रहा हूँ मैं इस दश्त में मगर ख़ुद से कभी मिला न तिरा दर मिला मुझे होता नहीं है तुझ पे किसी बात का असर लगता है तेरे रूप में पत्थर मिला मुझे बे-कैफ़ कट रही थी मुसलसल ये ज़िंदगी फिर ख़्वाब में वो ख़्वाब सा पैकर मिला मुझे इस बात पर करूँगा मैं दिन रात एहतिजाज किस जुर्म में ये ख़ाक का बिस्तर मिला मुझे मुझ को नहीं रही कभी मंज़र की जुस्तुजू घर के क़रीब कू-ए-सितमगर मिला मुझे जब तक रहा मैं ख़ुद में भटकता रहा यहाँ जब ख़ुद को खो दिया तो तिरा दर मिला मुझे मिट्टी में ढूँडता हुआ कुछ बूढ़ा आसमाँ मैं जिस तरफ़ गया यही मंज़र मिला मुझे करते हैं लोग हुस्न से याँ ना-रवा सुलूक रोते हुए हमेशा गुल-ए-तर मिला मुझे