उस की तस्वीर को सीने से लगाता ही नहीं हाँ मैं वो शख़्स हूँ जो इश्क़ जताता ही नहीं उस को कब से है तवक़्क़ो की बुलाऊँगा मैं मैं ही मसरूफ़ हूँ इतना की बुलाता ही नहीं एक सच ये है कि उस ने ही किया है बर्बाद एक ये भी है कि वो ज़ेहन से जाता ही नहीं मेरे कमरे की तो आदत है बिखर जाने की मैं यही सोच के कमरे को सजाता ही नहीं ख़ौफ़ लगता है मुझे रौशनी में जाने से शाम के वक़्त भी मैं शम्अ' जलाता ही नहीं हिज्र के बाद से उस ने न रचाई मेहंदी मैं भी अब झट से कोई फ़ोन उठाता ही नहीं