उस ने अफ़्शाँ जो चुनी रात को तन्हा हो कर आसमाँ टूट पड़ा मुझ पे सितारा हो कर भौकें महलों पे न मुनइ'म सग-ए-दुनिया हो कर हड्डियाँ क़ब्र में रह जाएँगी चूना हो कर वो जले तन हों मिरे पर भी जो मिट्टी में मिलूँ गर्द-बाद उठने लगीं आग-बगूला हो कर मय-कशी में जो हुआ चश्म-ए-ख़ुमारी का ख़याल रह गया जाम हथेली का फफोला हो कर 'शाद' ये इ'श्क़-ए-ज़नख्दाँ में है दिल डालूँ डोल कूद पड़ता हूँ मैं हर चाह में अंधा हो कर