उस ने देखा जो मुझे आलम-ए-हैरानी में गिर पड़ा हाथ से आईना परेशानी में आ गए हो तो बराबर ही में ख़ेमा कर लो मैं तो रहता हूँ इसी बे-सर-ओ-सामानी में इस क़दर ग़ौर से मत देख भँवर की जानिब तू भी चकरा के न गिर जाए कहीं पानी में कभी देखा ही नहीं इस ने परेशाँ मुझ को मैं कि रहता हूँ सदा अपनी निगहबानी में वो मिरा दोस्त था दुश्मन तो नहीं था 'फ़ैसल' मैं ने हर बात बता दी उसे नादानी में