उस ने मुझ से तो कुछ कहा ही नहीं मेरा ख़ुद से तो राब्ता ही नहीं क़ज़ा गर रोज़ दस्त बदले है मुझ को ईजाद तो किया ही नहीं अपने पीछे मैं छुप के चलता हूँ मेरा साया मुझे मिला ही नहीं कितनी मुश्किल के बा'द टूटा है इक रिश्ता कभी जो था ही नहीं बा'द मरने के घर नसीब हुआ ज़िंदगी ने तो कुछ दिया ही नहीं है-वफ़ाई तुझे मुबारक हो हम ने बदला कभी लिया ही नहीं