उस ने तोड़ा जहाँ कोई पैमाँ मरहले और हो गए आसाँ मीर है कोई कोई है सुल्ताँ सोचता हूँ कहाँ गया इंसाँ आँधियों में जला रहे थे चराग़ हाए वो लोग बे-सर-ओ-सामाँ फ़लसफ़ी फ़लसफ़ों में डूब गए आदमी का लहू रहा अर्ज़ां अब्र बन कर बरस ही जाएगा खेत से जब उठा ग़म-ए-दहक़ाँ शो'ला-ए-गुल है ज़ख़्म-ए-दिल की तरह ये चमन में बहार है कि ख़िज़ाँ सीना-ए-संग में भी फूल खिले ग़म जहाँ भी हुआ ग़म-ए-पिन्हाँ दिल की आज़ुर्दगी न पूछ 'ज़फ़र' बात मेरे लिए है संग-ए-गिराँ