उस पर निगाह फिरती रही और दूर दूर ख़्वाबों का एक बाग़ निगाहों में खिल गया हैराँ बहुत हुआ मिरी आँखों में झाँक कर और फिर वो इन में फैलते मंज़र में मिल गया कोई तो शय थी जो मिरे अंदर बदल गई या ज़ख़्म खुल गया कोई या कोई सिल गया ख़्वाबों से इक ख़ुमार में मल्बूस वो बदन इक रंग-ए-नश्शा था जो मिरे ख़ूँ में खिल गया गुज़री थी उस के पास से इक मौज-ए-बे-नियाज़ अंदर तलक दरख़्त मिरे दिल का हिल गया