उस पेड़ को छुआ तो समर-दार हो गया फिर जाने क्या हुआ वो शरर-बार हो गया मौसम की भूल थी कि मिरी दस्तरस की बात पत्थर से एक फूल नुमूदार हो गया बिखरे हुए हैं दिल में मिरी ख़्वाहिशों के रंग अब मैं भी इक सजा हुआ बाज़ार हो गया इक बार मैं भी ख़्वाब में बैठा था तख़्त पर आँखें खुलीं तो और भी नादार हो गया पहले तो सर को फोड़ लिया उस को देख कर फिर मैं भी एक रौज़न-ए-दीवार हो गया वैसे तमाम उम्र मिरी नींद में कटी घर में नक़ब लगी तो मैं बेदार हो गया यारो ये ज़िंदगी का मकाँ भी अजीब है ता'मीर हो गया कभी मिस्मार हो गया लफ़्ज़ों के फूल आँच सी देने लगे मुझे बेबाक आज शो'ला-ए-गुफ़्तार हो गया दुश्मन नज़र पड़ा तो मिटीं रंजिशें तमाम लड़ने को सारा शहर ही तय्यार हो गया मुजरिम बरी हुआ तो कई क़त्ल हो गए बस्ती का इक ग़रीब गिरफ़्तार हो गया 'अफ़ज़ल' कुछ इस तरह की अचानक हवा चली साँसें बहाल रखना भी दुश्वार हो गया