उस शोख़ ने निगाह न की हम भी चुप रहे हम ने भी आह आह न की हम भी चुप रहे आया न उन को अहद-मुलाक़ात का लिहाज़ हम ने भी कोई चाह न की हम भी चुप रहे देखा किए हमारी तरफ़ बज़्म-ए-ग़ैर में तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह न की हम भी चुप रहे था ज़िंदगी से बढ़ के हमें वज़्अ का ख़याल जब उम्र ने निबाह न की हम भी चुप रहे ख़ामोश हो गईं जो उमंगें शबाब की फिर जुरअत-ए-गुनाह न की हम भी चुप रहे मग़रूर था कमाल-ए-सुख़न पर बहुत 'हफ़ीज़' हम ने भी वाह-वाह न की हम भी चुप रहे