उस तरफ़ भी वही सियाह ग़ुबार हम ने देखा है जा के नींद के पार कितना कुछ बोलना पड़ा तुम को एक छोटा सा लफ़्ज़ था इंकार ख़ुश्क आँखों की चुप डराने लगी दिल मदद कर मिरी किसी को पुकार तुझ को ऐ शख़्स कुछ ख़बर भी है किस ख़राबे में है तिरा बीमार फिर ये दुख भी तो आसमानी है क्या ख़फ़ा होना इस ज़मीन से यार