उसे मैं तलाश कहाँ करूँ वो उरूज है मैं ज़वाल हूँ ग़म-ए-मुस्तक़िल मिरा हल कहाँ वो जवाब है मैं सवाल हूँ नए मौसमों की हूँ आरज़ू नई रिफ़अ'तों की हूँ जुस्तुजू मुझे तोड़ ख़्वाब-ए-जहान-ए-नौ मैं तिलिस्म-ए-बाब-ए-ख़याल हूँ मिरे आईने की कुदूरतें मिरी अपनी ज़ात की गर्द हैं मुझे कब मलाल किसी से हो कि मैं आप अपना मआल हूँ मिरी बंदगी के ये मश्ग़ले कि ख़ुदाई से भी मुआ'मले कभी ख़ुद ही दस्त-ए-करीम हूँ कभी ख़ुद ही दस्त-ए-सवाल हूँ ये बुलंद-ओ-पस्त-ए-जहान-ए-दिल कहीं हौसले कहीं मरहले कभी हूँ मैं औज-ए-ख़याल पर कभी ज़ोफ़-ए-जाँ से निढाल हूँ कभी खिल गई जो कोई कली तो पयाम-ए-शौक़ गली गली कभी आ गई जो हवा-ए-ग़म तो मैं गर्द-ए-बाद-ए-मलाल हूँ कभी मुझ से सोज़-ए-हयात ले कभी मुझ से साज़-ए-हयात सुन मैं फ़ज़ा-ए-क़र्या-ए-हिज्र हूँ मैं हवा-ए-शहर-ए-विसाल हूँ कभी मैं असीर-ए-मकाँ हुआ कभी मावरा-ए-ज़माँ हुआ कभी आज में कभी कल में हूँ मैं अजीब सूरत-ए-हाल हूँ कोई अपने आप से है मफ़र न हों अपनी ज़ात से बा-ख़बर मैं तलाश अपनी कहाँ करूँ कि मैं आप अपनी मिसाल हूँ मैं हूँ अपनी ज़ात में ख़ुद चमन मैं हूँ 'बाक़र' अपने नुमू का फ़न कभी ग़ुन्चग़ी में गिरफ़्ता-दिल कभी जोश-ए-जाँ से निहाँ हूँ