उसे मक्तूब भी तहरीर करना लगे है चाँद को तस्ख़ीर करना असीरान-ए-क़फ़स का हम-नवा हूँ मुझे भी वाक़िफ़-ए-ज़ंजीर करना सँभल जाने दो कुछ वहशत-ज़दा को बयाँ फिर ख़्वाब की ता'बीर करना तबस्सुम-रेज़ मंज़र कह रहे हैं लब-ए-जू घर कोई ता'मीर करना हम अहल-ए-दिल का मस्लक ही नहीं है किसी इंसान को दिल-गीर करना है अब तो बात करना राज़-दाँ से हवा के दोष पर तहरीर करना मिरा शेवा नहीं 'सज्जाद-मिर्ज़ा' किसी इंसान की तहक़ीर करना