उसे मना कर ग़ुरूर उस का बढ़ा न देना वो सामने आए भी तो उस को सदा न देना ख़ुलूस को जो ख़ुशामदों में शुमार कर लें तुम ऐसे लोगों को तोहफ़तन भी वफ़ा न देना वो जिस की ठोकर में हो सँभलने का दर्स शामिल तुम ऐसे पत्थर को रास्ते से हटा न देना सज़ा गुनाहों की देना उस को ज़रूर लेकिन वो आदमी है तुम उस की अज़्मत घटा न देना जहाँ रिफ़ाक़त हो फ़ित्ना-पर्दाज़ मौलवी की बहिश्त ऐसी किसी को मेरे ख़ुदा न देना 'क़तील' मुझ को यही सिखाया मिरे नबी ने कि फ़त्ह पा कर भी दुश्मनों को सज़ा न देना