उसे शिकस्त न होने पे मान कितना था जो रेज़ा रेज़ा हुआ सख़्त-जान कितना था है अब दिलों में ये दहशत कि सर पे आ न गिरे ज़मीं से दूर यही आसमान कितना था मैं अपना ज़र्फ़ भी देखूँ कि उस से रंजिश पर भुला दिया कि वही मेहरबान कितना था बजा है वुसअत-ए-दुनिया मगर छुटा जब घर खुला कि तंग हमीं पर जहान कितना था दिए तो बुझ गए बिजली के क़ुमक़ुमे न बुझे हवा को ज़ोर पे अपने गुमान कितना था जो फूल गोद से उस की 'कमाल' छीने गए उदास उन के लिए फूल-दान कितना था