उश्शाक़ का दिल दाग़ का अंदाज़ा हुआ महज़ पेशानी-ए-दिलबर पे अजब ग़ाज़ा हुआ महज़ ऐ नूर-ए-नज़र मुंतज़िर-ए-वस्ल हूँ आ जा दो पाट पलक के नहीं दरवाज़ा हुआ महज़ मख़मूर हूँ तुझ चश्म-ए-गुलाबी का पिला जाम नर्गिस के प्याले सती ख़म्याज़ा हुआ महज़ लिखता है 'सिराज' उस गुल-ए-बे-ए-ख़ार की तारीफ़ दीवाँ कूँ रग-ए-गुल सती शीराज़ा हुआ महज़