उसी अमल की ज़रा सी शराब देता चल शरर के हाथ में कोई गुलाब देता चल वो इंतिशार-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त में जिला देगा मगर उसी को ख़ुशी की किताब देता चल हर इक सवाल का मिलता रहा जवाब तुझे किसी सवाल का तू भी जवाब देता चल यहाँ तो तेरी हुकूमत का कारख़ाना था कभी हमारे ग़मों का हिसाब देता चल ज़मीं सुकून की हालत में आएगी लेकिन उसे 'नदीम' की शे'री किताब देता चल