उसी के प्यार को दिल से निकाल रक्खा है हमेशा जिस ने हमारा ख़याल रक्खा है वगरना टूट के कब का बिखर गया होता ख़याल-ए-यार ने दिल को सँभाल रक्खा है मगर हैं दीदा-ए-बीना को हम समेटे हुए हमारे आगे हमारा मआल रक्खा है चले भी आओ कि हम ने दयार-ए-ग़ैर में भी सबील ढूँड ली रस्ता निकाल रक्खा है शिकस्ता-ख़्वाब मुक़द्दर कहीं न बन जाएँ ख़ुदा-ए-वक़्त ने वा'दों पे टाल रक्खा है अज़ल के दिन से 'मुबारक' हवाओं की ज़द पर मिरा वजूद दिए की मिसाल रक्खा है